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Dhaniram Astrologer
at 2020 Oct 27
Dhaniram Astrologer
at 2020 Oct 27
पापांकुशा एकादशी आज, जानिए महत्व और पूजन विधि
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आज हुआ था राम-भरत मिलाप
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आज यानी 27 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी है। हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि को बहुत ही पवित्र माना गया है। आश्विन माह में नवरात्र और दशहरा पर्व के बाद एकादशी तिथि पड़ती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। पापांकुशा एकादशी व्रत को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति प्रदान कर सुख देने वाला माना गया है। विजयदशमी के बाद राम और भरत का मिलन भी इसी एकादशी को हुआ था।

ऐसे पड़ा नाम
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पाप रूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधने के कारण ही इसका नाम पापाकुंशा एकादशी हुआ। इस दिन मौन रहकर भगवद् स्मरण तथा भजन-कीर्तन करने का विधान है। इस प्रकार भगवान की आराधना करने से मन शुद्ध होता है और मनुष्य में सदगुणों का समावेश होता है। इस व्रत के प्रभाव से अनेकों अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है। इसलिए पापांकुशा एकादशी व्रत का बहुत महत्व है।

व्रत कथा
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प्राचीन काल में विंध्य पर्वत पर 'क्रोधन' नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी ज़िंदगी, हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान तथा मिथ्या भाषण आदि में व्यतीत कर दी। जब जीवन का अंतिम समय आया, तब यमराज ने अपने दूतों से कहा कि वे क्रोधन को ले आयें। यमदूतों ने क्रोधन को बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है। मृत्यु के भय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम जा पहुँचा। महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उस पर कृपा करके उसे अगले दिन ही आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने को कहा। इस प्रकार वह महापातकी व्याध पापांकुशा एकादशी का व्रत-पूजन कर भगवान की कृपा से विष्णु लोक को गया। उधर यमदूत इस चमत्कार को देख हाथ मलते रह गए और बिना क्रोधन के यमलोक वापस लौट गए।

एक अन्य कथा इस प्रकार है
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एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि "आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है और इस अवसर पर किसकी पूजा होती है एवं इस व्रत का क्या लाभ है?"

युधिष्ठिर की मधुर वाणी को सुनकर गुणातीत श्रीकृष्ण भगवान बोले- आश्विन शुक्ल एकादशी 'पापांकुशा' के नाम से जानी जाती है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पाप का निरोध करती है अर्थात उनसे रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ, मोक्ष और काम इन तीनों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति यह व्रत करता है, उसके सारे संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रती को सुबह स्नान करके विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए और उनके नाम से व्रत और पूजन करना चाहिए। व्रती को रात्रि में जागरण करना चाहिए। जो भक्ति पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनका जीवन सुखमय होता है और वह भोगों मे लिप्त नहीं होता।
श्रीकृष्ण कहते हैं, जो इस पापांकुशा एकदशी का व्रत रखते हैं, वे भक्त कमल के समान होते हैं जो संसार रूपी माया के भवर में भी पाप से अछूते रहते हैं। कलिकाल में जो भक्त इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें वही पुण्य प्राप्त होता है, जो सतयुग में कठोर तपस्या करने वाले ऋषियों को मिलता था। इस एकादशी व्रत का जो व्यक्ति शास्त्रोक्त विधि से अनुष्ठान करते हैं, वे न केवल अपने लिए पुण्य संचय करते हैं, बल्कि उनके पुण्य से मातृगण व पितृगण भी पाप मुक्त हो जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करके व्रती को द्वादशी के दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें दान देना चाहिए।

पापांकुशा एकादशी का महत्व
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, जैसा फल कठिन तपस्या करके प्राप्त किया जा सकता है, वैसा ही फल पापांकुशा एकादशी का व्रत करके प्राप्त किया जा सकता है। पापांकुशा एकादशी से जुड़ी धार्मिक मान्यतानुसार, जो भी व्यक्ति सच्चे मन और श्रद्धा से इस एकादशी का व्रत करता है, उसे साक्षात बैकुंठधाम की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से चंद्रमा के खराब प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

मोक्ष की होती प्राप्ति
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एकादशी के दिन दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापाकुंशा एकादशी का महत्व बताया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए।

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